Best and Short Essay on rani lakshmi bai in hindi language 500+ words



Essay on rani lakshmi bai in hindi language-नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका, hindiwe के एक नए निबद्ध में।यह निबद्ध स्कूल तथा कॉलेज के छात्रों के लिए है।आज का निबद्ध हमने एक ऐसे एक महान योद्धा Rani lakshmi bai पर लिखा है।जिन्होंने देश को अंग्रेजों से आज़ादी दिलवाने हेतु अपनी जान न्यौछावर कर दी।

Essay on rani lakshmi bai in hindi language

Essay on rani lakshmi bai in hindi language

प्रस्तावना

भारत एक ऐसा देश जहाँ पर कई वीर पुत्रों ने जन्म लिया है,लेकिन इस मिट्टी में ऐसी वीर पुत्रियों ने भी जन्म लिया जिन्होंने अपने देश के लिए जान तक न्यौछावर कर दी।रानी लष्मीबाई उन्हीं वीरांगनाओं में से एक है जो कभी भी डरकर पीछे नही हटी।जिन्होंने अंग्रेजो के दांत खटे कर दिए और देश के लिए शहीद होकर हमेशा के लिए अमर हो गयी।

व्यतिगत जीवन

जन्म :-

रानी लष्मीबाई का जन्म सन 1828 में काशी (वाराणसी) में रहने वाले एक मराठी ब्राह्मण के घर पर हुआ था।लष्मीबाई के माता-पिता ने इनका नाम मणिकर्णिका रखा,लेकिन सब इन्हें प्यार से मनु कहकर बुलाते थे।इनके पिता का नाम मरोपंत तांबे जो बिठूर के पेशवा बाजीराव की सेवा में थे तथा माता का नाम भागीरथी देवकी था जो एक ग्रहणी थी।जब लष्मीबाई 4 वर्ष की थी तो इनकी माता का देहांत हो गया था।रानी लष्मीबाई बचपन से ही तीर चलाने,घुड़ सवारी जैसी अन्य चीज़ो में रुचि लेने लगी थी,जिसके कारण उनके पिताजी ने उन्हें शिक्षा-दीक्षा के साथ युद्ध कौशल ज्ञान भी दिया।

 विवाह :-

सन 1842 में जब वह 14 वर्ष की तो उनका विवाह उत्तर भारत में स्तिथ (झाँसी) राज्य के अंतिम राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था।विवाह के पशचात वह झाँसी की रानी बनी।विवाह के 9 वर्ष बाद सन 1851 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया परंतु दुर्भाग्यवश वह सिर्फ 4 माह ही जीवित रहा।

पुत्र की मृत्यु के कारण महाराज गंगाधर राव बीमार पड़ गए।तब सन 1853 में उन्होंने अपने भाई के पुत्र को गोद ले लिया तथा उसका नाम दामोदर राव रखा।महाराज अपने पुत्र की मृत्यु से उभर ही नही पाए जिसके कारण वह 21 नवंबर 1953 को स्वर्ग सिधार गए।

उनकी मृत्यु के पश्चात अंग्रेजो ने झाँसी की रानी को असहाय और अनाथ समझकर,उनके गोद लिए हुए पुत्र को अवैध घोषित कर दिया तथा रानी लष्मीबाई को झाँसी छोड़कर चले जाने को कहा लेकिन रानी लष्मीबाई ने उनकी बात न मानकर उन्हें स्पष्ट कह दिया कि “झाँसी मेरी है और मैं इसे नहीं छोड़ सकती”।

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 स्वतंत्रता संग्राम :-

7 मार्च 1854 को ब्रिटिश सरकार ने झाँसी को अपने साम्राज्य में मिलाने का आदेश जारी किया।रानी लष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कुछ अन्य राज्यो की मदद से सेना का निर्माण करना शुरू कर दिया।उनकी सेना में पुरुष ही नही अपितु महिला भी शामिल थी जिन्हें युद्ध में लड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया गया था।उनकी सेना में कई महारथी जैसे गुलाम खान,खुदा बक्श,काशी बाई, सूंदर,जवाहर सिंह आदि मिलाकर 14000 सैनिक शामिल थे।

10 मई 1857 मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ।इसके कुछ समय बाद मार्च 1858 में ब्रिटिश सेना ने झाँसी पर हमला प्रारंभ कर दिया।तब झाँसी की तरफ से तात्या टोपे के नेतृत्व में 20000 सैनिकों के साथ यह युद्ध लड़ा गया जो कि 2 हफ़्तों तक चला।इस युद्ध मे झाँसी की हार हुई।

ब्रिटिश सरकार ने झाँसी के महल पर कब्ज़ा कर लिया।लेकिन रानी लष्मीबाई अपने पुत्र के साथ महल से निकलने में कामयाब रही तथा कालपी में जाकर रहने लगी।कालपी में रहते हुए रानी लष्मीबाई और तात्या टोपे ने ग्वालियर के किले पर आक्रमण करने की योजना बनाई।नाना साहब, शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह आदि सभी ने रानी का साथ दिया और ग्वालियर के किले पर अधिकार कर लिया।

 मृत्य :-

18 जून 1858 में ब्रिटिश सेना के सेनापति सर ह्यूरोज ने अपनी सेना के साथ ग्वालियर के किले पर हमला कर दिया।यह रानी लष्मीबाई का आखरी युद्ध था उन्होंने इस युद्ध में अपनी सेना का नेतृत्व बखूबी किया।युद्ध में भी रानी लष्मीबाई ने अपनी वीरता का परिचय दिया।वे घायल होगी अंततः वीरगति प्रताप की।रानी लष्मीबाई न देश की स्वंतंत्रता के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी।

उपसंहार :- रानी लष्मीबाई स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत थी।जिन्होंने नारी होकर भी अत्यंत साहस दिखाया और अपनी आखरी सास तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी।उन्होंने अंग्रेजों को यह अहसाह दिलाया कि भारत में सिर्फ वीरों ने नही वीरांगनाओं ने भी जन्म लिया है।

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

         

 धन्यवाद

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Ravinder Bisht

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